Friday, October 3, 2008
कुंबले का विकल्प तैयार...
खूब चर्चा हो रही है इस बात पर कि भारतीय क्रिकेट के पांच दिग्गज क्रिकेट को कब अलविदा कहेंगे। चर्चा इस बात पर भी हो रही है कि क्या इन खिलाड़ियों को सम्मानजनक विदाई देने के लिए किसी डील का सहारा लिया गया है। डील- यानी खिलाड़ी रिटायरमेंट की तारीख बताएं और उसके बदले में उन्हें मिलेगी सम्मानजनक विदाई, ऐसी विदाई जैसी स्टीव वॉ-एडम गिलक्रिस्ट या ब्रायन लारा को मिली थी। वैसे कुंबले और सौरभ कहते हैं कि ऐसी कोई डील नहीं हुई। खैर, इस डील से आगे की बात करते हैं। ये तो हर कोई मानेगा कि अब श्रीकांत की अगुवाई वाली चयन समिति को नए टेस्ट कप्तान के बारे में सलाह मश्विरा शुरू कर देना चाहिए। किसे दी जाए ये जिम्मेदारी। मुझे लगता है कि मौजूदा समय में जो खिलाड़ी इस जिम्मेदारी को बेहतरीन तरीके से निभा सकता है- वो है वीरेंद्र सहवाग।
मैं ये नाम हवा में यूं ही नहीं उछाल रहा... यूं ही नहीं कह रहा कि वीरेंद्र सहवाग को टेस्ट टीम की कप्तानी सौंप देनी चाहिए...इसके पीछे तर्क हैं- दलीलें हैं...और सबसे बड़ी वजह है वीरेंद्र सहवाग का प्रदर्शन है।
गॉल टेस्ट मैच की पहली पारी से बात शुरू करते हैं। वीरेंद्र सहवाग ने दोहरा शतक लगाया- वैसे तो 200 से ज्यादा रन वीरेंद्र सहवाग इससे पहले भी 4 बार बना चुके हैं- पर इस बार का यानी उनके करियर में पांचवी बार 200 पार का स्कोर है बेहद अहम। अहम इसलिए क्योंकि भारतीय टीम ने कुल 329 रन बनाए और उसमें से 201 रन थे वीरू के। यानी 60 फीसदी रन थे वीरेंद्र सहवाग के...मतलब हर 10 में से 6 रन वीरेंद्र सहवाग के थे। विकेट के दूसरे छोर से विकेट गिरते रहे- राहुल द्रविड़ ने मारे 2, वीरू ने मारे 200...सचिन तेंडुलकर ने मारे 5 वीरू ने मारे 200...और ऐसा नहीं कि वीरेंद्र सहवाग ने ये कमाल पहली बार किया है। हाल के टेस्ट मैचों में वीरेंद्र सहवाग टीम के सबसे काबिल खिलाड़ियों में रहे हैं।
बात शुरू करते हैं हालिया ऑस्ट्रेलिया दौरे से। मेलबर्न और सिडनी में टीम टेस्ट मैच हार गई। टीम को सलामी जोड़ी से अच्छी साझेदारी नहीं मिल रही थी। पर्थ में तीसरे टेस्ट में पहली बार भारतीय टीम को सहवाग की बदौलत 50 रनों के आस पास की साझेदारी मिली। फिर दूसरी पारी में वीरू ने गिलक्रिस्ट और ब्रेट ली का विकेट लिया वो अलग।
अगला टेस्ट एडीलेड में था। पहली पारी में वीरू की हाफ सेंचुरी और फिर दूसरी पारी में शतक। भूलना नहीं चाहिए कि उस टेस्ट मैच में भी पहली पारी में ऑस्ट्रेलिया ने करीब 50 रन की अहम बढ़त लेकर भारतीय टीम को बैकफुट पर ढकेल दिया था। चौथे दिन का खेल खत्म होने तक भारत एक विकेट गंवा चुका था, और पांचवें दिन का पूरा खेल सामने पड़ा था- डर था कि कहीं भारतीय टीम फिर ना घुटने टेक दे.. पर वीरू टीम को फ्रंटफुट पर ले आए। लंबे समय तक बल्लेबाज़ी की- एक छोर संभाले रखा और बना दिए डेढ़ सौ से ज्यादा रन।
फिर दक्षिण अफ्रीका की टीम भारत के दौरे पर थी। पहली पारी में मेहमानो ने खड़ा कर दिया 540 रनों का पहाड़। लगा कि गया टेस्ट मैच...वीरू ने कहा- ऐसे कैसे गया टेस्ट मैच। लो तिहरा शतक। 304 गेंदों पर 319 रन। और अब गॉल टेस्ट में वीरू का कमाल...वैसे मुल्तान में उनके तिहरे शतक और फिर लाहौर में पाकिस्तान के रनों के पहाड़ के जवाब में राहुल द्रविड़ के साथ 400 रनों के पार की साझेदारी भी आपको याद ही होगी। कहने को कुछ रह नहीं जाता।
गॉल में वीरेंद्र सहवाग जब 199 रन पर थे, तब भी उन्होंने 1 रन लेकर दोहरा शतक पूरा करने की बजाए ईशांत शर्मा को दूसरे छोर पर रखना ही ठीक समझा। वो एक टीममैन हैं- इसके पीछे इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है।
वीरू जब फ्लॉप होते हैं तो उनपर ऊगलियां भी उठाई जाती हैं- पर उनका खेल नहीं बदला- खेल का अंदाज नहीं बदला। गेंद मारने के लिए होती है- वो मारेंगे...। हाल ही में वीरू को एक इंटरव्यू में कहते सुना कि वो तकनीक किस काम की जिससे रन ना बनाए जा सकें। तकनीक वही सबसे अच्छी है- जिससे रन बनते हों। वो रन जो टीम के काम आएं। उनका ये अक्खड़पन इस लिहाज से भारतीय क्रिकेट के काम आएगा कि वो टीम पर बोझ साबित हो रहे खिलाड़ियों पर उंगली उठा सकते हैं- जैसे धोनी को वनडे में यंगिस्तान चाहिए...वैसे ही सहवाग भी टेस्ट टीम को पूरी तरह से यंगिस्तान भले ही ना बनाए पर बुजुर्गिस्तान कहलाने से बचा सकते हैं...वीरू खुद अभी करीब 30 साल के हैं- 8 साल का तजुर्बा उनकी झोली में है...अब नहीं तो कब बनाएंगे वीरेंद्र सहवाग को कप्तान...तब जब वो 32-33 के हो जाएंगे...अपनी फॉर्म से जूझ रहे होंगे...टीम में जगह बचाए रखने का संकट झेल रहे होंगे...नहीं तो फिर यही है राइट टाइम-
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