Wednesday, November 5, 2008
तीन प्रेस कॉंफ्रेंस की नाराजगी...
(अभी कुछ दिनों पहले ही कुंबले के विकल्प पर बात की थी- अब विकल्प भी मिल गया है, पर वीरू नहीं धोनी को मिली ये जिम्मेदारी- इस पर भी बातचीत होगी पर पहले बात अनिल कुंबले पर जिनकी तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस ने बेवजह उनपर उंगलियां उठाने का मौका दिया)
2 नवंबर को दिल्ली टेस्ट का आखिरी दिन था। करीब तीन बजने वाले थे- सवा दो बजे के आस पास हमारे मुंबई रिपोर्टर ने फोन करके ये जानकारी दी थी कि कुंबले आज अपने संन्यास का ऐलान करने वाले हैं- पर खबर पुख्ता नहीं हो रही थी- लिहाजा इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। थोड़ी देर बाद ही- हम लोग बैठकर टीवी पर मैच ही देख रहे थे- जब कॉमेंनटेटर ने कहा- ब्रेकिंग न्यूज....अनिल कुंबले ने इस टेस्ट मैच के बाद संन्यास लेने का फैसला किया है। मेरे दिमाग में तुरंत हाल फिलहाल की कुंबले की तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस याद आ गई- पहले उन तीनों प्रेस कॉन्फ्रेंस का हवाला दे दूं....फिर कुंबले के खेल और उनकी काबिलियत की बातें...हो सकता है आपको ये लगे कि ये एक बहुत बड़े खिलाड़ी के बारे में लिखने की ग़लत शुरूआत है....पर अगर ये ग़लत शुरूआत है- तो भी इसे जानना समझना बहुत ज़रूरी है।
तारीख 8 अक्टूबर 2008, बैंगलोर टेस्ट से पहले का दिन
मैच से पहले की प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये सवाल कुंबले से पूछा गया कि क्या वो भी क्रिकेट को अलविदा कहने की तैयारी कर चुके हैं (उसी दिन हिंदुस्तान टाइम्स के अपने कॉलम में कुंबले ने लिखा था कि वो बैंगलोर में अपने होम ग्राउंड पर आखिरी मैच खेल रहे हैं) जवाब में नाराज हो गए कुंबले कहने लगे- ‘मैं उन खिलाड़ियों में से नहीं हूं, जो सीरीज के बीच में अपने संन्यास का ऐलान करेंगे...मुझे जब संन्यास का ऐलान करना होगा मैं ज़रूर बताऊंगा- पर ये सब कुछ सही समय पर होगा’
तारीख 13 अक्टूबर 2008, बैंगलोर टेस्ट का आखिरी दिन
कुंबले प्रेस कांफ्रेंस के लिए आए- मैच ड्रॉ हो चुका था। अचानक एक पत्रकार ने पूछा इस टेस्ट मैच में फेब-4 के प्रदर्शन से वो कितने संतुष्ट हैं। सवाल के पूछे जाने के दौरान ही कुंबले का चेहरा बनना शुरू हो गया था- ऐसा लग रहा था कि कोई सवाल ना पूछ रहा हो बल्कि उन्हें कुछ भला बुरा कह रहा हो...खैर कुंबले का जवाब आया- ये फेब-4 कौन है, पहले ये बताइए? पत्रकार ने भी तुरंत जवाब दिया- वही सचिन-सौरभ-राहुल-लक्ष्मण...फिर जवाब मिला- मैं सभी के प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट हूं...अगले मैच में सभी के सभी शतक मारेंगे।
अप्रैल 2008, दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कानपुर टेस्ट
कानपुर टेस्ट से पहले एक सहयोगी दोस्त ने पूछ लिया कि क्या हुआ अनिल भाई, इस सीरीज में आप एक बेहद औसत गेंदबाज की तरह दिख रहे हैं (सवाल पूछने का तरीका थोड़ा सीधा और ताना मारने जैसा हो सकता है- पर सवाल तो जायज है) जवाब मिला- मैं आपको बता दूं कि मैं आपके देश का सबसे ज्यादा विकेट लेने वाला गेंदबाज हूं...मेरे नाम इतने टेस्ट विकेट हैं...ऐसे ही कुछ रिकॉर्ड्स कुंबले ने गिना दिए।
आखिर मुझे इन प्रेस कॉन्फ्रेंसों का जिक्र क्यों करना पड़ा? क्योंकि मेरा एक सवाल है कि कुंबले ने अब भी तो सीरीज के बीच में ही संन्यास का एलान किया। आखिर क्या खिलाड़ियों से सवाल तब ही पूछे जाने चाहिए जब वो सौवां- दो सौवां या छह सौवां विकेट पूरा करें...मैं मानता हूं कि सवाल पूछने का तरीका थोड़ा नाराज करने वाला हो सकता है- पर अगर जवाब भी वैसे ही मिलें तो गलती तो दोनों तरफ से हुई ना?
चलिए, अब कुंबले की वो बातें जिसके लिए कुंबले, कुंबले हैं। किसी और गेंदबाज ने देश को उनसे ज्यादा टेस्ट मैच नहीं जिताए। सचिन, सौरभ, राहुल द्रविड़ और लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों के दौर में अपनी पहचान बनाना आसान नहीं होता। पर अनिल भाई ऐसा करने में कामयाब रहे।
वो शेन वॉर्न की तरह मैच फिक्सिंग- एक्सट्रा मैरिटल अफेयर- लड़कियों के साथ SMS जैसे मामलों के लिए नहीं जाने गए
वो मुरलीधरन की तरह चकिंग के आरोप में कभी नहीं फंसे...
वो जाने गए कोटला में परफेक्ट 10 के लिए, वो जाने गए टूटे जबड़े के साथ एंटीगा टेस्ट में गेंदबाजी के लिए और लारा का विकेट झटकने के लिए। वो जाने गए ऐसे गेंदबाज के तौर पर जिसके गेंद थामने के बाद हर कोई यही सोचता था कि अब जंबो विकेट लेंगे...वो जाने गए मैदान के बाहर और भीतर अनुशासन के लिए।
पर करियर के अंत के एक-दो साल में अनिल भाई को शायद खुद पर उठती उंगलियां रास नहीं आईं...इसीलिए वो प्रेस कॉन्फ्रेंस में अक्सर नाराज नाराज से दिखाई दिए।
अनिल भाई को आने वाले दिनों के लिए ढेरों शुभकामनाएं देते हुए बस ये याद दिलाना चाहता हूं कि जंबो मीडिया आपकी दुश्मन नहीं- भूलिएगा नहीं कि पिछले ही साल ऑस्ट्रेलिया में सिडनी टेस्ट हारने के बाद जब आप प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचे थे, और कहा था कि ‘आई थिंक ऑनली वन टीम हैज़ प्लेयड इन द राइट स्पिरिट ऑफ द गेम’ (मुझे लगता है कि सिर्फ एक टीम ने खेल भावना के साथ टेस्ट मैच खेला) इसी मीडिया ने तालियों से हाल को गूंजा दिया था। एक बार फिर अनिल कुंबले के करियर को सलाम....उन्हें बधाई और उनके चाहने वालों से माफी कि शुरूआत में मैंने नाराजगी जताई (नाराजगी अगर जायज हो तो मुझे माफ करें)
वो रिकॉर्ड्स जिनके साथ करियर खत्म हुआ
गेंदबाजी के रिकॉर्ड
Mat Inns Balls Runs Wkts BBI BBM Ave Econ SR 4w 5w 10
टेस्ट मैच 132 236 40850 18355 619 10/74 14/149 29.65 2.69 65.9 31 35 8
वनडे 271 265 14496 10412 337 6/12 6/12 30.89 4.30 43.0 8 2 0
फर्स्ट क्लास 244 66931 29347 1136 10/74 25.83 2.63 58.9 72 19
लिस्ट ए 380 20247 14178 514 6/12 6/12 27.58 4.20 39.3 14 3 0
ट्वेंटी 20 12 12 277 350 11 3/14 3/14 31.81 7.58 25.1 0 0 0
और इस पोस्ट की शुरूआत में वो तस्वीरें जिसके साथ सफर खत्म हुआ
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1 comment:
...the only hassle i have with the media is that in india any and every sports journalist assume that they know more about cricket than the players which is ridiculous...from field setting to batting order, from bowling changes to the strokes they have their opinions.
..without going into the details of supporting or debating the blog, i guess, we need to understand that any player who has been performing for years and have been ruling the field tries to give their best and everytime they must be asking these questions to themselves rather wait for others about their potential...they know that one good inning or spell may put them back to the game/ form...as ofcourse they know the art they have been practising from about atleast 20 to 30 years...yes for certain people like Gilchrist, the eye opener about the reflexes may be a drop chance for others it could be a dry patch for wickets or runs...people have already started eyeing Dravids neck, the same way they were doing for Sachin around 2006-2007...i guess, we should start doing things which is our forte rather questioning on others art which the 'others' have mastered...
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