Tuesday, December 16, 2008
दोबारा मत कहना कि....
ऐसा नहीं है कि टीम इंडिया अब कभी हारेगी नहीं...ऐसा भी नहीं है कि अब हमारे चैंपियंस कभी बल्लेबाजी या गेंदबाजी में फ्लॉप नहीं होंगे...लेकिन आज यानी 16 दिसंबर 2008 को मैं ये दावे से कहता हूं कि फिलहाल भारतीय टीम दुनिया में सबसे बेहतरीन क्रिकेट खेल रही है...
चेन्नई में मिली जीत क्रिकेट की दुनिया के कई भ्रम तोड़ती है...खास तौर पर भारतीय टीम से जुड़े भ्रम...पहला भ्रम ये था कि भारतीय टीम इतने बड़े लक्ष्य का पीछा नहीं कर सकती...कहा भी यही जा रहा था कि भारतीय टीम चौथी पारी में 387 रनों के लक्ष्य का पीछा नहीं कर पाएगी। देखा जाए तो ये लक्ष्य मुश्किल था भी...पर टीम इंडिया ने यहां पहला भ्रम तोड़ा... एक सोची समझी रणनीति के तहत चौथी पारी में बल्लेबाजी की शुरूआत की गई, सहवाग ने उम्मीद और अपने नाम के मुताबिक इंग्लिश गेंदबाज़ी को तहस नहस कर दिया। फिर द्रविड़ ने मायूस ज़रूर किया- लेकिन बाकी खिलाड़ियों ने रणनीति के हिसाब से अपने अपने रोल को निभाया और टीम को दिलाई एतिहासिक जीत।...
भारतीय टीम ने दूसरा भ्रम ये तोड़ा कि चार सेशन में करीब 400 रन नहीं बन सकते, एक ऐसे मैच में जिसमें आप पहले तीनों दिनों में सिर्फ हार की तरफ बढ़ रहे हों...पर भारतीय टीम ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया- इंग्लैंड ने दूसरी पारी में जब पारी समाप्ति का ऐलान किया तो मैच में करीब चार सेशन का खेल ही बाकी था, लक्ष्य कोई छोटा मोटा नहीं- 387 रन। पर रनों के इस पहाड़ पर भारतीय टीम के धुरंधर आसानी से चढ़ गए। 6 विकेट के जिस अंतर से भारतीय टीम ने जीत दर्ज की उसके बाद तो विश्वास के साथ ये कहा जा सकता है कि इंग्लैंड ने अगर और ज्यादा 50-60 रनों का लक्ष्य रखा होता तो भारतीय टीम उसे भी पा लेती...
तीसरा भ्रम भी तोड़ा भारतीय टीम ने टॉस हारने के बाद मैच जीतना मुश्किल होता है...कई अरसे से लोग ये कहते और सुनते आ रहे हैं कि भारतीय उप महाद्वीप में टॉस का रोल बेहद अहम होता है....टॉस का रोल अहम होता भी है, टॉस हारने के बावजूद भारतीय टीम ने मैच जीता- पहली पारी में 75 रनों की अहम बढ़त लेने के बाद भी इंग्लिश टीम मैच हार गई...
चौथा भ्रम (ये तो काफी बड़ा भ्रम था) ये था कि चौथी पारी में सूरमा हो जाते हैं ढेर... दुनिया भर की क्रिकेट टीमों के मन में अगर ये भ्रम हो तो वो भी अब टूट गया है... भारतीय टीम के सूरमाओं ने चौथी पारी में खुद को सूरमा ही साबित किया। चेन्नई टेस्ट से पहले चौथी पारी में गंभीर का औसत था 46.67 का, चेन्नई में उन्होंने बनाए 66 रन। सहवाग का औसत सिर्फ 27.33 का है, पर उन्होंने बनाए 83 रन। तेंडुलकर का औसत है 33.6 का उन्होंने बनाए नॉट आउट 103 रन। युवराज सिंह का चौथी पारी में औसत है 36.2 का, उन्होंने बनाए 85 रन...
पांचवां भ्रम ये भी था कि भारतीय टीम में अगर एक खिलाड़ी फेल होता हैं तो सब फेल हो जाते हैं...भारतीय टीम एक दो खिलाड़ियों के भरोसे ही चलती है... पर अब ऐसा कहां है? अब सामूहिक नाकामी नहीं सामूहिक कामयाबी के लिए खेलती है भारतीय टीम...सलामी बल्लेबाज नहीं चलते तो मध्य क्रम बेहतर ढंग से अपनी जिम्मेदारी निभाता है। मध्य क्रम भी चूक जाए तो निचले मध्य क्रम में बल्लेबाज अपना रोल निभाते हैं। पहली पारी में टीम को अच्छी शुरूआत नहीं मिल पाई- मध्य क्रम भी लड़खड़ाता ही दिखा, फिर भी भारतीय टीम स्कोर को ढाई सौ रनों के आस-पास ले गई। दूसरी पारी में भी द्रविड़ और लक्ष्मण नहीं चले- फिर भी -सचिन-सहवाग-गंभीर और युवराज ने मिलकर टीम को ऐतिहासिक जीत दिला दी...
एक आखिरी भ्रम युवराज सिंह से जुड़ा हुआ, उन्होंने भी साबित कर दिया कि वो टेस्ट क्रिकेट खेल सकते हैं....अब और कोई भ्रम बचा है क्या...नहीं ना, मौजूदा दौर में भारतीय टीम बेहतरीन क्रिकेट खेल रही है...
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