Tuesday, December 16, 2008

दोबारा मत कहना कि....




ऐसा नहीं है कि टीम इंडिया अब कभी हारेगी नहीं...ऐसा भी नहीं है कि अब हमारे चैंपियंस कभी बल्लेबाजी या गेंदबाजी में फ्लॉप नहीं होंगे...लेकिन आज यानी 16 दिसंबर 2008 को मैं ये दावे से कहता हूं कि फिलहाल भारतीय टीम दुनिया में सबसे बेहतरीन क्रिकेट खेल रही है...
चेन्नई में मिली जीत क्रिकेट की दुनिया के कई भ्रम तोड़ती है...खास तौर पर भारतीय टीम से जुड़े भ्रम...पहला भ्रम ये था कि भारतीय टीम इतने बड़े लक्ष्य का पीछा नहीं कर सकती...कहा भी यही जा रहा था कि भारतीय टीम चौथी पारी में 387 रनों के लक्ष्य का पीछा नहीं कर पाएगी। देखा जाए तो ये लक्ष्य मुश्किल था भी...पर टीम इंडिया ने यहां पहला भ्रम तोड़ा... एक सोची समझी रणनीति के तहत चौथी पारी में बल्लेबाजी की शुरूआत की गई, सहवाग ने उम्मीद और अपने नाम के मुताबिक इंग्लिश गेंदबाज़ी को तहस नहस कर दिया। फिर द्रविड़ ने मायूस ज़रूर किया- लेकिन बाकी खिलाड़ियों ने रणनीति के हिसाब से अपने अपने रोल को निभाया और टीम को दिलाई एतिहासिक जीत।...
भारतीय टीम ने दूसरा भ्रम ये तोड़ा कि चार सेशन में करीब 400 रन नहीं बन सकते, एक ऐसे मैच में जिसमें आप पहले तीनों दिनों में सिर्फ हार की तरफ बढ़ रहे हों...पर भारतीय टीम ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया- इंग्लैंड ने दूसरी पारी में जब पारी समाप्ति का ऐलान किया तो मैच में करीब चार सेशन का खेल ही बाकी था, लक्ष्य कोई छोटा मोटा नहीं- 387 रन। पर रनों के इस पहाड़ पर भारतीय टीम के धुरंधर आसानी से चढ़ गए। 6 विकेट के जिस अंतर से भारतीय टीम ने जीत दर्ज की उसके बाद तो विश्वास के साथ ये कहा जा सकता है कि इंग्लैंड ने अगर और ज्यादा 50-60 रनों का लक्ष्य रखा होता तो भारतीय टीम उसे भी पा लेती...
तीसरा भ्रम भी तोड़ा भारतीय टीम ने टॉस हारने के बाद मैच जीतना मुश्किल होता है...कई अरसे से लोग ये कहते और सुनते आ रहे हैं कि भारतीय उप महाद्वीप में टॉस का रोल बेहद अहम होता है....टॉस का रोल अहम होता भी है, टॉस हारने के बावजूद भारतीय टीम ने मैच जीता- पहली पारी में 75 रनों की अहम बढ़त लेने के बाद भी इंग्लिश टीम मैच हार गई...
चौथा भ्रम (ये तो काफी बड़ा भ्रम था) ये था कि चौथी पारी में सूरमा हो जाते हैं ढेर... दुनिया भर की क्रिकेट टीमों के मन में अगर ये भ्रम हो तो वो भी अब टूट गया है... भारतीय टीम के सूरमाओं ने चौथी पारी में खुद को सूरमा ही साबित किया। चेन्नई टेस्ट से पहले चौथी पारी में गंभीर का औसत था 46.67 का, चेन्नई में उन्होंने बनाए 66 रन। सहवाग का औसत सिर्फ 27.33 का है, पर उन्होंने बनाए 83 रन। तेंडुलकर का औसत है 33.6 का उन्होंने बनाए नॉट आउट 103 रन। युवराज सिंह का चौथी पारी में औसत है 36.2 का, उन्होंने बनाए 85 रन...
पांचवां भ्रम ये भी था कि भारतीय टीम में अगर एक खिलाड़ी फेल होता हैं तो सब फेल हो जाते हैं...भारतीय टीम एक दो खिलाड़ियों के भरोसे ही चलती है... पर अब ऐसा कहां है? अब सामूहिक नाकामी नहीं सामूहिक कामयाबी के लिए खेलती है भारतीय टीम...सलामी बल्लेबाज नहीं चलते तो मध्य क्रम बेहतर ढंग से अपनी जिम्मेदारी निभाता है। मध्य क्रम भी चूक जाए तो निचले मध्य क्रम में बल्लेबाज अपना रोल निभाते हैं। पहली पारी में टीम को अच्छी शुरूआत नहीं मिल पाई- मध्य क्रम भी लड़खड़ाता ही दिखा, फिर भी भारतीय टीम स्कोर को ढाई सौ रनों के आस-पास ले गई। दूसरी पारी में भी द्रविड़ और लक्ष्मण नहीं चले- फिर भी -सचिन-सहवाग-गंभीर और युवराज ने मिलकर टीम को ऐतिहासिक जीत दिला दी...
एक आखिरी भ्रम युवराज सिंह से जुड़ा हुआ, उन्होंने भी साबित कर दिया कि वो टेस्ट क्रिकेट खेल सकते हैं....अब और कोई भ्रम बचा है क्या...नहीं ना, मौजूदा दौर में भारतीय टीम बेहतरीन क्रिकेट खेल रही है...

Wednesday, November 5, 2008

तीन प्रेस कॉंफ्रेंस की नाराजगी...





(अभी कुछ दिनों पहले ही कुंबले के विकल्प पर बात की थी- अब विकल्प भी मिल गया है, पर वीरू नहीं धोनी को मिली ये जिम्मेदारी- इस पर भी बातचीत होगी पर पहले बात अनिल कुंबले पर जिनकी तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस ने बेवजह उनपर उंगलियां उठाने का मौका दिया)

2 नवंबर को दिल्ली टेस्ट का आखिरी दिन था। करीब तीन बजने वाले थे- सवा दो बजे के आस पास हमारे मुंबई रिपोर्टर ने फोन करके ये जानकारी दी थी कि कुंबले आज अपने संन्यास का ऐलान करने वाले हैं- पर खबर पुख्ता नहीं हो रही थी- लिहाजा इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। थोड़ी देर बाद ही- हम लोग बैठकर टीवी पर मैच ही देख रहे थे- जब कॉमेंनटेटर ने कहा- ब्रेकिंग न्यूज....अनिल कुंबले ने इस टेस्ट मैच के बाद संन्यास लेने का फैसला किया है। मेरे दिमाग में तुरंत हाल फिलहाल की कुंबले की तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस याद आ गई- पहले उन तीनों प्रेस कॉन्फ्रेंस का हवाला दे दूं....फिर कुंबले के खेल और उनकी काबिलियत की बातें...हो सकता है आपको ये लगे कि ये एक बहुत बड़े खिलाड़ी के बारे में लिखने की ग़लत शुरूआत है....पर अगर ये ग़लत शुरूआत है- तो भी इसे जानना समझना बहुत ज़रूरी है।


तारीख 8 अक्टूबर 2008, बैंगलोर टेस्ट से पहले का दिन
मैच से पहले की प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये सवाल कुंबले से पूछा गया कि क्या वो भी क्रिकेट को अलविदा कहने की तैयारी कर चुके हैं (उसी दिन हिंदुस्तान टाइम्स के अपने कॉलम में कुंबले ने लिखा था कि वो बैंगलोर में अपने होम ग्राउंड पर आखिरी मैच खेल रहे हैं) जवाब में नाराज हो गए कुंबले कहने लगे- ‘मैं उन खिलाड़ियों में से नहीं हूं, जो सीरीज के बीच में अपने संन्यास का ऐलान करेंगे...मुझे जब संन्यास का ऐलान करना होगा मैं ज़रूर बताऊंगा- पर ये सब कुछ सही समय पर होगा’
तारीख 13 अक्टूबर 2008, बैंगलोर टेस्ट का आखिरी दिन
कुंबले प्रेस कांफ्रेंस के लिए आए- मैच ड्रॉ हो चुका था। अचानक एक पत्रकार ने पूछा इस टेस्ट मैच में फेब-4 के प्रदर्शन से वो कितने संतुष्ट हैं। सवाल के पूछे जाने के दौरान ही कुंबले का चेहरा बनना शुरू हो गया था- ऐसा लग रहा था कि कोई सवाल ना पूछ रहा हो बल्कि उन्हें कुछ भला बुरा कह रहा हो...खैर कुंबले का जवाब आया- ये फेब-4 कौन है, पहले ये बताइए? पत्रकार ने भी तुरंत जवाब दिया- वही सचिन-सौरभ-राहुल-लक्ष्मण...फिर जवाब मिला- मैं सभी के प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट हूं...अगले मैच में सभी के सभी शतक मारेंगे।
अप्रैल 2008, दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कानपुर टेस्ट
कानपुर टेस्ट से पहले एक सहयोगी दोस्त ने पूछ लिया कि क्या हुआ अनिल भाई, इस सीरीज में आप एक बेहद औसत गेंदबाज की तरह दिख रहे हैं (सवाल पूछने का तरीका थोड़ा सीधा और ताना मारने जैसा हो सकता है- पर सवाल तो जायज है) जवाब मिला- मैं आपको बता दूं कि मैं आपके देश का सबसे ज्यादा विकेट लेने वाला गेंदबाज हूं...मेरे नाम इतने टेस्ट विकेट हैं...ऐसे ही कुछ रिकॉर्ड्स कुंबले ने गिना दिए।

आखिर मुझे इन प्रेस कॉन्फ्रेंसों का जिक्र क्यों करना पड़ा? क्योंकि मेरा एक सवाल है कि कुंबले ने अब भी तो सीरीज के बीच में ही संन्यास का एलान किया। आखिर क्या खिलाड़ियों से सवाल तब ही पूछे जाने चाहिए जब वो सौवां- दो सौवां या छह सौवां विकेट पूरा करें...मैं मानता हूं कि सवाल पूछने का तरीका थोड़ा नाराज करने वाला हो सकता है- पर अगर जवाब भी वैसे ही मिलें तो गलती तो दोनों तरफ से हुई ना?

चलिए, अब कुंबले की वो बातें जिसके लिए कुंबले, कुंबले हैं। किसी और गेंदबाज ने देश को उनसे ज्यादा टेस्ट मैच नहीं जिताए। सचिन, सौरभ, राहुल द्रविड़ और लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों के दौर में अपनी पहचान बनाना आसान नहीं होता। पर अनिल भाई ऐसा करने में कामयाब रहे।



वो शेन वॉर्न की तरह मैच फिक्सिंग- एक्सट्रा मैरिटल अफेयर- लड़कियों के साथ SMS जैसे मामलों के लिए नहीं जाने गए
वो मुरलीधरन की तरह चकिंग के आरोप में कभी नहीं फंसे...
वो जाने गए कोटला में परफेक्ट 10 के लिए, वो जाने गए टूटे जबड़े के साथ एंटीगा टेस्ट में गेंदबाजी के लिए और लारा का विकेट झटकने के लिए। वो जाने गए ऐसे गेंदबाज के तौर पर जिसके गेंद थामने के बाद हर कोई यही सोचता था कि अब जंबो विकेट लेंगे...वो जाने गए मैदान के बाहर और भीतर अनुशासन के लिए।
पर करियर के अंत के एक-दो साल में अनिल भाई को शायद खुद पर उठती उंगलियां रास नहीं आईं...इसीलिए वो प्रेस कॉन्फ्रेंस में अक्सर नाराज नाराज से दिखाई दिए।
अनिल भाई को आने वाले दिनों के लिए ढेरों शुभकामनाएं देते हुए बस ये याद दिलाना चाहता हूं कि जंबो मीडिया आपकी दुश्मन नहीं- भूलिएगा नहीं कि पिछले ही साल ऑस्ट्रेलिया में सिडनी टेस्ट हारने के बाद जब आप प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचे थे, और कहा था कि ‘आई थिंक ऑनली वन टीम हैज़ प्लेयड इन द राइट स्पिरिट ऑफ द गेम’ (मुझे लगता है कि सिर्फ एक टीम ने खेल भावना के साथ टेस्ट मैच खेला) इसी मीडिया ने तालियों से हाल को गूंजा दिया था। एक बार फिर अनिल कुंबले के करियर को सलाम....उन्हें बधाई और उनके चाहने वालों से माफी कि शुरूआत में मैंने नाराजगी जताई (नाराजगी अगर जायज हो तो मुझे माफ करें)


वो रिकॉर्ड्स जिनके साथ करियर खत्म हुआ
गेंदबाजी के रिकॉर्ड
Mat Inns Balls Runs Wkts BBI BBM Ave Econ SR 4w 5w 10
टेस्ट मैच 132 236 40850 18355 619 10/74 14/149 29.65 2.69 65.9 31 35 8
वनडे 271 265 14496 10412 337 6/12 6/12 30.89 4.30 43.0 8 2 0
फर्स्ट क्लास 244 66931 29347 1136 10/74 25.83 2.63 58.9 72 19
लिस्ट ए 380 20247 14178 514 6/12 6/12 27.58 4.20 39.3 14 3 0
ट्वेंटी 20 12 12 277 350 11 3/14 3/14 31.81 7.58 25.1 0 0 0

और इस पोस्ट की शुरूआत में वो तस्वीरें जिसके साथ सफर खत्म हुआ

Friday, October 3, 2008

कुंबले का विकल्प तैयार...


खूब चर्चा हो रही है इस बात पर कि भारतीय क्रिकेट के पांच दिग्गज क्रिकेट को कब अलविदा कहेंगे। चर्चा इस बात पर भी हो रही है कि क्या इन खिलाड़ियों को सम्मानजनक विदाई देने के लिए किसी डील का सहारा लिया गया है। डील- यानी खिलाड़ी रिटायरमेंट की तारीख बताएं और उसके बदले में उन्हें मिलेगी सम्मानजनक विदाई, ऐसी विदाई जैसी स्टीव वॉ-एडम गिलक्रिस्ट या ब्रायन लारा को मिली थी। वैसे कुंबले और सौरभ कहते हैं कि ऐसी कोई डील नहीं हुई। खैर, इस डील से आगे की बात करते हैं। ये तो हर कोई मानेगा कि अब श्रीकांत की अगुवाई वाली चयन समिति को नए टेस्ट कप्तान के बारे में सलाह मश्विरा शुरू कर देना चाहिए। किसे दी जाए ये जिम्मेदारी। मुझे लगता है कि मौजूदा समय में जो खिलाड़ी इस जिम्मेदारी को बेहतरीन तरीके से निभा सकता है- वो है वीरेंद्र सहवाग।
मैं ये नाम हवा में यूं ही नहीं उछाल रहा... यूं ही नहीं कह रहा कि वीरेंद्र सहवाग को टेस्ट टीम की कप्तानी सौंप देनी चाहिए...इसके पीछे तर्क हैं- दलीलें हैं...और सबसे बड़ी वजह है वीरेंद्र सहवाग का प्रदर्शन है।
गॉल टेस्ट मैच की पहली पारी से बात शुरू करते हैं। वीरेंद्र सहवाग ने दोहरा शतक लगाया- वैसे तो 200 से ज्यादा रन वीरेंद्र सहवाग इससे पहले भी 4 बार बना चुके हैं- पर इस बार का यानी उनके करियर में पांचवी बार 200 पार का स्कोर है बेहद अहम। अहम इसलिए क्योंकि भारतीय टीम ने कुल 329 रन बनाए और उसमें से 201 रन थे वीरू के। यानी 60 फीसदी रन थे वीरेंद्र सहवाग के...मतलब हर 10 में से 6 रन वीरेंद्र सहवाग के थे। विकेट के दूसरे छोर से विकेट गिरते रहे- राहुल द्रविड़ ने मारे 2, वीरू ने मारे 200...सचिन तेंडुलकर ने मारे 5 वीरू ने मारे 200...और ऐसा नहीं कि वीरेंद्र सहवाग ने ये कमाल पहली बार किया है। हाल के टेस्ट मैचों में वीरेंद्र सहवाग टीम के सबसे काबिल खिलाड़ियों में रहे हैं।
बात शुरू करते हैं हालिया ऑस्ट्रेलिया दौरे से। मेलबर्न और सिडनी में टीम टेस्ट मैच हार गई। टीम को सलामी जोड़ी से अच्छी साझेदारी नहीं मिल रही थी। पर्थ में तीसरे टेस्ट में पहली बार भारतीय टीम को सहवाग की बदौलत 50 रनों के आस पास की साझेदारी मिली। फिर दूसरी पारी में वीरू ने गिलक्रिस्ट और ब्रेट ली का विकेट लिया वो अलग।
अगला टेस्ट एडीलेड में था। पहली पारी में वीरू की हाफ सेंचुरी और फिर दूसरी पारी में शतक। भूलना नहीं चाहिए कि उस टेस्ट मैच में भी पहली पारी में ऑस्ट्रेलिया ने करीब 50 रन की अहम बढ़त लेकर भारतीय टीम को बैकफुट पर ढकेल दिया था। चौथे दिन का खेल खत्म होने तक भारत एक विकेट गंवा चुका था, और पांचवें दिन का पूरा खेल सामने पड़ा था- डर था कि कहीं भारतीय टीम फिर ना घुटने टेक दे.. पर वीरू टीम को फ्रंटफुट पर ले आए। लंबे समय तक बल्लेबाज़ी की- एक छोर संभाले रखा और बना दिए डेढ़ सौ से ज्यादा रन।
फिर दक्षिण अफ्रीका की टीम भारत के दौरे पर थी। पहली पारी में मेहमानो ने खड़ा कर दिया 540 रनों का पहाड़। लगा कि गया टेस्ट मैच...वीरू ने कहा- ऐसे कैसे गया टेस्ट मैच। लो तिहरा शतक। 304 गेंदों पर 319 रन। और अब गॉल टेस्ट में वीरू का कमाल...वैसे मुल्तान में उनके तिहरे शतक और फिर लाहौर में पाकिस्तान के रनों के पहाड़ के जवाब में राहुल द्रविड़ के साथ 400 रनों के पार की साझेदारी भी आपको याद ही होगी। कहने को कुछ रह नहीं जाता।
गॉल में वीरेंद्र सहवाग जब 199 रन पर थे, तब भी उन्होंने 1 रन लेकर दोहरा शतक पूरा करने की बजाए ईशांत शर्मा को दूसरे छोर पर रखना ही ठीक समझा। वो एक टीममैन हैं- इसके पीछे इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है।
वीरू जब फ्लॉप होते हैं तो उनपर ऊगलियां भी उठाई जाती हैं- पर उनका खेल नहीं बदला- खेल का अंदाज नहीं बदला। गेंद मारने के लिए होती है- वो मारेंगे...। हाल ही में वीरू को एक इंटरव्यू में कहते सुना कि वो तकनीक किस काम की जिससे रन ना बनाए जा सकें। तकनीक वही सबसे अच्छी है- जिससे रन बनते हों। वो रन जो टीम के काम आएं। उनका ये अक्खड़पन इस लिहाज से भारतीय क्रिकेट के काम आएगा कि वो टीम पर बोझ साबित हो रहे खिलाड़ियों पर उंगली उठा सकते हैं- जैसे धोनी को वनडे में यंगिस्तान चाहिए...वैसे ही सहवाग भी टेस्ट टीम को पूरी तरह से यंगिस्तान भले ही ना बनाए पर बुजुर्गिस्तान कहलाने से बचा सकते हैं...वीरू खुद अभी करीब 30 साल के हैं- 8 साल का तजुर्बा उनकी झोली में है...अब नहीं तो कब बनाएंगे वीरेंद्र सहवाग को कप्तान...तब जब वो 32-33 के हो जाएंगे...अपनी फॉर्म से जूझ रहे होंगे...टीम में जगह बचाए रखने का संकट झेल रहे होंगे...नहीं तो फिर यही है राइट टाइम-

Thursday, September 25, 2008

धोनी में तेंडुलकर की शक्ल देखिए...मजा आएगा


मैं ये पहले ही साफ कर देता हूं कि मैं ये कत्तई नहीं कह रहा कि महेंद्र सिंह धोनी, सचिन तेंदुलकर से बड़े खिलाड़ी हैं। मैं सिर्फ ये कह रहा हूं कि क्या धोनी के नाम पर हमें वाकई आधुनिक क्रिकेट में एक बहुत बड़े कद वाला खिलाड़ी मिल गया है...जिसकी पहचान अभी हम ठीक से नहीं कर पाए हैं...एक से एक कारनामे करता जा रहा है ये खिलाड़ी- कहीं इतनी आगे जाने वाला खिलाड़ी न बन जाए, जो फिलहाल हमारी कल्पना से बाहर है। लिहाजा एक बार फिर समझने की कोशिश करते हैं इस खिलाड़ी के व्यक्तित्व और कारनामों को...
मैं नया नाम दे रहा हूं...
आधुनिक क्रिकेट का नया तेंडुलकर-महेंद्र सिंह धोनी
ये बात मैं यूं ही नहीं कह रहा...इसकी गवाही देते हैं आंकड़े और उनकी उपलब्धियां
अपने 3 साल और 9 महीने और 120 वनडे के करियर में धोनी बना चुके हैं 3793 रन...उनकी औसत है 47.41 की...उनका स्ट्राइक रेट है 91.31 का...उनके नाम हैं 4 शतक...24 अर्धशतक...
(ये आंकड़े सितंबर के तीसरे हफ्ते तक के हैं)
अब हम आपको बताते हैं सचिन तेंडुलकर के आंकडे, वो आंकड़े जो सचिन के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखने के ठीक 120 वनडे के बाद के हैं..
सचिन तेंडुलकर ने 120 वनडे मैचों के बाद बनाए थे 4205 रन...सचिन की औसत थी 40.04...सचिन का स्ट्राइक रेट था- 82.11, 9 शतक और 26 अर्धशतक थे सचिन के खाते में...
आपकी सुविधा के लिए हम इन आंकड़ों को एक साथ बताते हैं- करियर में धोनी बना चुके हैं 3793 रन, सचिन के हैं 4205 रन...सिर्फ 412 रन ज्यादा...धोनी की औसत सचिन से काफी ज्यादा है 47.41 की...उनका स्ट्राइक रेट भी है सचिन से काफी आगे 91.31 की...शतक के मामले में वो सचिन से पीछे हैं- उनके नाम हैं 4 शतक...यानी 5 शतक कम...पर अर्धशतक करीब करीब बराबर...धोनी ने लगाए हैं 24 अर्धशतक...
120 वनडे बाद सचिन धोनी
मैच 4205 3793 (-412)
औसत 40.4 47.41 (+7.37)
स्ट्राइक रेट 82.11 91.31 (-9.20)
शतक 9 4 (-5)
अर्धशतक 26 24 (-2)
और इसके साथ साथ है धोनी की ये उपलब्धियां...
आईसीसी वनडे प्लेयर ऑफ द इयर
आपको पता ही होगा कि ये अवॉर्ड पाने वाले वो पहले भारतीय खिलाड़ी है.. इसके अलावा धोनी आईसीसी की वनडे रैंकिंग में नंबर एक की पायदान पर भी राज कर रहे हैं...
अवॉर्ड के मामले में भी कहानी कुछ ऐसी ही है
120 वनडे खेलने के बाद सचिन के करियर में आए थे कुल 15 मैन ऑफ द मैच अवॉर्ड और 3 मैन ऑफ द सीरीज अवॉर्ड। धोनी के खाते में हैं 9 मैन ऑफ द मैच अवॉर्ड और 3 मैन ऑफ द सीरीज अवॉर्ड
120 वनडे खेलने के बाद सचिन धोनी
मैन ऑफ द मैच 15 9
मैन ऑफ द सीरीज 3 3

एक और दिलचस्प आंकड़ा देखिए। 3 साल और 9 महीने के करियर के बाद सचिन कहां खड़े थे...इस कसौटी पर हम सचिन की तुलना धोनी से इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि उस जमाने में मैच काफी कम होते थे- अब काफी ज्यादा...सचिन ने 3 साल और 9 महीने में खेले थे 59 वनडे। बनाए थे 1581 रन। उनके नाम तब तक कोई शतक नहीं था।
धोनी को आधुनिक क्रिकेट का तेंडुलकर हम एक और वजह से कह रहे हैं...धोनी ने अपने बल्ले से जो कमाल किया है- उसके साथ साथ विकेट के पीछे जो धमाल किया है, उसका जिक्र भी ज़रूरी है। धोनी ने अपने करियर में 121 खिलाड़ियों को विकेट के पीछे लपका है- और 36 खिलाड़ियों को स्टंप किया है...और अब बात बतौर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की...
एक हैं महेंद्र सिंह धोनी...
एक थे सचिन तेंडुलकर...
धोनी उन गिने चुने खिलाड़ियों में से है, जिन्होंने कप्तानी संभालने के बाद भी अपनी रन औसत को बचाए रखा है...बल्कि धोनी तो एक कदम आगे हैं...कप्तानी संभालने के बाद उनकी रन औसत में हुआ है इज़ाफा...
कप्तानी संभालने से पहले धोनी की औसत थी 44.23 की, कप्तानी संभालने के बाद उनकी औसत है 54.83 की
अब कप्तानी संभालने के बाद सचिन तेंडुलकर की औसत का जायजा लीजिए।
बतौर बल्लेबाज सचिन तेंडुलकर की औसत 45.74 है... पर कप्तानी संभालने के दौरान सचिन की औसत गिरकर 37.75 पर पहुंच गई थी
ये बात हर कोई जानता है कि सचिन तेंडुलकर के करियर में कप्तानी एक बुरे ख्वाब की तरह है। शायद इसीलिए एक बार कप्तानी छोड़ने के बाद दोबारा जब भी उनके पास ये प्रस्ताव आया उन्होंने हामी नहीं भरी...
बतौर कप्तान सचिन की कामयाबी का प्रतिशत था 31.5, जबकि धोनी उनसे काफी आगे हैं। धोनी की कामयाबी का प्रतिशत है- 52.8
एक और आंकड़ा आपको बताते चलें। जो धोनी की काबिलियत का सबूत है। बतौर कप्तान धोनी ने विकेट के आगे और विकेट के पीछे दोनों जगह किया है कमाल।
धोनी ने कप्तानी के दौरान 46 कैच और 16 स्टंपिंग भी की है। यानी कुल 62 शिकार किए हैं धोनी ने विकेट के पीछे रहते हुए।
देखा जाए तो शुरू शुरू में धोनी के लिए भी कप्तानी का ताज कांटों भरा ही था। राहुल द्रविड़ ने अचानक कप्तानी छोड़ दी थी। चयनकर्ता इस कशमकश में थे कि वो यू-टर्न लेते हुए सौरभ गांगुली या सचिन तेंडुलकर को कप्तानी के लिए तैयार करें- या चुनें कोई नया नाम...सचिन ने ये जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया, सौरभ पर आम राय नहीं बनी- लिहाजा धोनी को मिल गई टीम इंडिया की कमान....एक ऐसी टीम की कमान जिसमें सदी के एक दो नहीं 3-3 महानायक और टीम इंडिया के 3-3 पूर्व कप्तान शामिल थे...सचिन तेंडुलकर- सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़। पर धोनी ने सोच समझ के साथ कप्तानी के रास्ते पर कदम बढ़ाया.. कामयाबी मिली... तो फिर टीम में नए चेहरों की वकालत शुरू की...दब्बू कप्तान बनने की बजाए धोनी ने चयनकर्ताओं के सामने अपनी बात को मजबूती से रखा। धोनी लगातार नतीजे दे रहे थे...लिहाजा चयनकर्ताओं को भी धोनी की बात माननी पड़ी...धोनी का प्रदर्शन-धोनी का अंदाज ये बता रहा है कि टीम इंडिया के आने वाले कल की तस्वीर सुनहरी है।
और क्या चाहिए आपको आधुनिक क्रिकेट के सचिन तेंडुलकर से...सब कुछ तो दिया है धोनी ने...भई पिछले 2 दशक में क्रिकेट बदल गया है...थोडा बहुत नहीं-पूरी तरह से, खेल अब भी गेंद और बल्ले का ही है...पर छोड़िए बहुत लंबी खींच जाएगी कहानी...बस यूं मान लीजिए बदलते क्रिकेट में सचिन तेंडुलकर भी बदल गया है...21वीं सदी में धोनी में तेंडुलकर की शक्ल देखिए...मजा आएगा

आईपीएल के अगले संस्करण से पहले पिछले संस्करण की याद....



प्लीज़ थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि आप एक बेहद हाई-फाई थिएटर में बैठे हैं...फिल्म थिएटर नहीं- रंगमंच वाला थिएटर (बहुत पैसे खर्च किए है निर्देशक ने- एक एक कलाकार लाखों करोड़ो में पैसे ले रहा है, इतने पैसे में कई फिल्में बनाई जा सकती थीं- पर निर्देशक को फिल्म नहीं बनानी- उसे थिएटर का शौक है). खैर साहब, थिएटर काफी बड़ा है- नाटक शुरू हो गया है। सब लोग इस नाटक का लुत्फ उठाना चाहते हैं। फिर से आपको याद दिला दें कि आप एक बेहद हाई-फाई थिएटर में बैठे हैं-
सीन-1
दिल्ली देशवासियों की शान है और मैं दिल्ली की जान हूं...ये कहते कहते अक्षय कुमार मैदान में दर्शकों से रूबरू हो रहे हैं। मैदान में करीब 20-25 हजार लोग मौजूद हैं। इनमें से टिकट खरीद कर स्टेडियम पहुंचने वालों की तादाद तकरीबन आधी है। ये इंडियम प्रीमियर लीग है या क्रिकेट के नाम पर सर्कस...ये सवाल हर कोई पूछ रहा है- पर हर कोई आंखे फैला कर चेहरे पर मुस्कान के साथ अक्षय कुमार का स्टंट भी देख रहा है। बाउंड्री के बाहर लकड़ी के प्लेटफॉर्म बने हुए हैं- विदेशी कलाबाज उस पर साइकिल से कलाबाजियां खा रहे हैं- दर्शक तालियां बजा रहे हैं- वही दर्शक, जो पूछ रहे हैं कि ये क्रिकेट है या सर्कस...अब मैदान में चौका लगा है चीयर लीडर्स (परिभाषा- शरीर को हर जगह-हर तरीके से हिलाने की कला- कम उम्र- चेहरे पर मुस्कराहट और ढेर सारा मेकअप) डांस कर रही हैं- फैली हुई आंखे अब फटने लगी हैं...अब फिर तालियां बजने लगी हैं...इस बार भी दर्शक वही हैं जो जानना चाहते थे कि ये क्रिकेट है या सर्कस...वीरेंद्र सहवाग लगातार तीन गेंदों पर तीन चौके जमा चुके हैं- दर्शक तालियां बजा बजाकर पागल हुए जा रहे हैं...सहवाग चौथी गेंद पर बोल्ड हो गए हैं, दर्शक फिर ताली बजा रहे हैं। मैच खत्म हो गया है दिल्ली की टीम जीत गई है...प्रेस कॉन्फ्रेंस में खिलाड़ी आए हैं- किसी को लाखों मिले हैं किसी को करोड़ो...हर किसी को क्रिकेट का ये नया अवतार बड़ा पसंद आ रहा है- हर कोई तारीफ कर रहा है—हर कोई यानी खिलाड़ी...हर सवाल के जवाब में एक लाइन ज़रूर कही जा रही है कि ये कॉन्सेप्ट बेहतरीन है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी कुछ लोग तालियां बजा रहे हैं। वैसे उनके दिमाग में सवाल अब भी घूम रहा है कि ये क्रिकेट है या सर्कस... अब मुद्दे की बात.दिल्ली की जनता दो चीजें देखने के लिए सिर्फ पास चाहती है- पहली क्रिकेट दूसरी सर्कस. अब फायदा हो गया है- पब्लिक का फायदा- जागो ग्राहक जागो- अब साल में एक दो बार ही पुलिस महकमे वाले अपने रिश्तेदार को याद करने की जरूरत है- पास वो दिला देंगे और क्रिकेट और सर्कस देखने में ज्यादा फर्क तो अब रह नहीं गया है।
(पहला सीन खत्म दूसरे सीन से पहले मंच पर एक बोर्ड लाकर रखा गया है- 4 चार साल बाद- निर्देशक भी कहीं ना कहीं फिल्मों से प्रेरित हैं- होंगे भी, इसमें हर्ज क्या है)
सीन 2
नाटक दोबारा शुरू हो गया है. इस बार भी मंच पर एक ऑरकेस्ट्रा है. इस बार भी अक्षय कुमार एक सूत्रधार की भूमिका में हैं. रिंग में शेर खड़ा है- रिंग मास्टर का कोड़ा शेर के इर्द गिर्द सड़ाक सड़ाक की आवाज के साथ चल रहा है. पतली पतली कमर वाली कलाकार साइकिल चला रही है- जिमनास्ट कर रही है. इस बार तो साइकिल दो पहिए वाली नहीं- एक कोने में तीन-चार जोकर आपस में किसी बात के लिए झगड़ा कर रहे हैं. परदे के पीछे जादूगर अपनी टेबल सजाने में लगा है. अगला नंबर उसी का है. वो लड़की को चाकू से काट देगा- उसके हाथों में खून नहीं लगेगा- वो रंग बिरंगी कतरनों से तिरंगा झंडा बना देगा. वो पैसे दोगुना कर देगा- वो कुछ भी कर सकता है- बैकग्राउंड में गाना बज रहा है- खैर, अचानक अक्षय कुमार भारतीय टीम की क्रिकेट ड्रेस पहन कर प्रगट हो गए हैं. उनके हाथ में बैट है- बॉल भी. बैट को रखकर अब अक्षय ने माइक थाम लिया है. थोड़े बूढ़े लगने लगे हैं अक्षय- खैर, अक्षय दर्शकों को बता रहे हैं कि इससे पहले जादूगर पाशा अपना कारनामा दिखाएं- वो उन्हें कुछ बहुत खास दिखाना चाहते हैं. इस बार भी सर्कस की सारी सीटें भरी नहीं हैं- और आधे से ज्यादा लोग पास की बदौलत सर्कस देखने आए हैं. खैर, बड़ी बड़ी लाइटें बंद हो गई हैं. ऑरकेस्ट्रा के कलाकार जिस उंची जगह पर बैठे थे उसी के बगल से एक बड़ी स्क्रीन लग गई है. सन्नाटा छाया हुआ है, लोग समझ नहीं पा रहे कि इस स्क्रीन पर क्या होने वाला है. परदा बंद हो जाता है.
सीन- 3
मंच पर वापस रोशनी कर दी गई है. बड़ी स्क्रीन पर भारत पाकिस्तान के बीच ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप के लीग मैच का आखिरी ओवर दिखाया जाएगा- ऐसी जानकारी छाप कर रखी गई है स्क्रीन पर. अचानक कॉमेंट्री शुरू हो जाती है- अक्षय कुमार कॉमेंट्री कर रहे हैं- पहले ही बता चुके हैं कि अपनी जवानी के दिनों में गेंदबाजी करते थे. गेंद है शांताकुमारम श्रीशांत के हाथों में क्रीज पर मौजूद है मिस्बाह उल हक़. आखिरी गेंद पाकिस्तान को जीत के लिए 1 रन चाहिए. श्रीशांत बॉलिंग रनअप से भागते हुए- श्रीशांत की अच्छी गेंद- मिस्बाह ने गेंद को कवर की दिशा में खेल दिया है, गेंद हरभजन सिंह के हाथों में उन्होंने थ्रो किया -श्रीशांत का सही निशाना और मिस्बाह रन आउट. भारतीय टीम झूम उठी है. धोनी सभी के गले लग रहे है. अब बॉल आउट होगा- भारत की तरफ से वीरू-भज्जी और उथप्पा ने सही निशाना लगा दिया है, पाकिस्तान की तरफ से हर कोई चूक गया है मैच भारत ने जीत लिया है. स्क्रीन पर लिख कर आ गया है शूटआउट एट डरबन. अक्षय कुमार एक बड़े से गुब्बारे में तिरंगा लहराते- मेरा नाम जोकर में राज कपूर सरीखी ड्रेस पहने आंखों से ओझल हो रहे है... सर्कस देखने आए दर्शक तालियां बजा रहे हैं. दर्शक बहुत खुश हैं. अब पहली बार किसी ने सवाल उठाया है हम सर्कस देखने आए हैं या क्रिकेट. परदा फिर बंद हो गया है
सीन-4
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के आला अधिकारियों की मीटिंग चल रही है. कुछ खास तैयारी है मीटिंग की. पत्रकारों की फोटो ऑप के लिए 5 मिनट का समय दिया गया है, हर कोई आपस में हंस हंस कर बात कर रहे हैं. करीब तीन दर्जन चैनलों के कैमरामैन एक दूसरे को धक्का दे-देकर क्लोज शॉट्स बना रहे हैं. कोशिश इस बात की भी है कि सचिव के हाथ में जो कागज है उसके शॉट्स भी ले लिये जाएं, शाम को एक्सकलूसिव की पट्टी के साथ चलाने के काम आएंगे. प्रिंट के फोटोग्राफर्स ने भी तस्वीरें कैद कर ली हैं. 5 मिनट हो चुका है. अब प्लीज प्लीज कहते हुए लगभग धक्का देकर कैमरामैन्स को बाहर किया जा रहा है. कैमरामैंस बाहर जा चुके हैं. रिपोर्टर ओबी वैन से लाइव दे रहे हैं- हर कोई यही बता रहा है कि शाम तक बीसीसीआई कोई बड़ा फैसला लेने वाली है. इंडियन प्रीमियर लीग के अगले संस्करण से जुड़ा कोई बड़ा फैसला हो सकता है. परदा बंद हो जाता है.
सीन- 5
चैनल का न्यूजरूम है. सवा चार बज रहे हैं. एसाइनमेंट डेस्क पर रिपोर्टर का फोन आया है, वो बता रहा है कि इस बार आईपीएल का प्रसारण फलां चैनल को दिया गया है- फोटो राइट्स फलां एजेंसी के पास हैं- इस बार फलां टीम के आइकन खिलाड़ी फलां होंगे. आम तौर पर साढ़े चार बजे दिखाया जाने वाला क्राइम का रिपीट टेलीकास्ट ड्रॉप हो गया है. बड़ी बड़ी ब्रेकिंग न्यूज चल रही है. रिपोर्टर से एंकर ने सवाल दागा है- सोनल, बताएं और कौन कौन से बड़े फैसले हुए हैं इस मीटिंग में. सोनल बता रही है- देखिए राहुल, इन अहम फैसलों के अलावा बोर्ड के उपाध्यक्ष ने हमें ये भी बताया कि उन्हें ये जानकारी मिली थी कि कुछ सर्कस कंपनियां अपने शो हिट कराने के लिए अलग अलग आइटम के बीच में ट्वेंटी-20 क्रिकेट की झलकियां दिखा रही हैं- बोर्ड ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और तय किया है कि अब से ट्वेंटी-20 क्रिकेट के सर्कस राइट्स भी बेंचे जाएंगे. यानी अगर सर्कस के दौरान क्रिकेट दिखाना है तो उसके लिए बोर्ड को पैसे देने होंगे. एंकर ने रिपोर्टर का शुक्रिया अदा कर दिया है. रिपोर्टर बीसीसीआई के एक अधिकारी के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के लिए उसके पीछे पीछे घूम रहा है. अधिकारी ये कह कर गाड़ी में बैठ रहा है कि अगली बार...फिर मुस्करा कर पूछ रहा है वैसे इस मामले में इंटरव्यू क्या देगा ये क्रिकेट थोड़े ही है ये तो सर्कस है...अधिकारी ने आंख मारी है. रिपोर्टर को अपना एक्सक्लूसिव इंटरव्यू हाथ से निकलता दिख रहा है. परदा धीरे धीरे बंद हो रहा है. परदा बंद हो चुका है. पूरी तरह बंद.

दर्शक ताली बजा रहे हैं- उन्हें भी समझ आ गया है कि वो सर्कस देख रहे हैं या क्रिकेट.